पंचांग (panchag)
पंचांग (panchag) अर्थात जिसके पाँच अंग है तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार।
तिथिः
कुल तिथियाँ 16 होती है,जो पंचांग में कृष्ण पक्ष व शुकल पक्ष के अंतर्गत प्रदर्शित होती है।
तिथियों के नाम एकम्, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वाद्वशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा है।
नक्षत्रः
नक्षत्रों की कुल संख्यां 27 होती है,जिनके नाम इस प्रकार है
क्र सं0 नक्षत्र नक्षत्र स्वामी
1. अशिवनी केतु
2. भारिणी शुक्र
3. कृतिका सूर्य
4. रोहिणी चन्द्रमा
5. मृगशिरा मंगल
6. आर्द्रा राहु
7. पुनर्वसु गुरु
8. पुष्य शनि
9. आश्लेषा बुध
10. मघा केतु
11. पुर्वफाल्गुनी शुक्र
12. उतरा फाल्गुनी सूर्य
13. हस्त चन्द्रमा
14. चित्रा मंगल
15. स्वाति राहु
16. विशाखा गुरु
17. अनुराधा शनि
18. ज्येष्ठा बुध
19. मूल केतु
20. पूर्वाषाढ़ा शुक्र
21. उतराषाढ़ा सूर्य
22. श्रवण चन्द्रमा
23. धनिष्ठा मंगल
24. शतभिषा राहु
25. पूर्वाभाद्रपद गुरु
26. उतरा भाद्रपद शनि
27. रेवती बुध
यदि 360 डिग्री को 27 से विभाजित किया जाए तो एक नक्षत्र 13 डिग्री 20 अंश का होता है।
ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों को तीन-तीन नक्षत्रों का आधिपत्य दिया गया है, जैसे
1. सूर्य के आधिपत्य के नक्षत्र हैं, कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी तथा उतराषाढ़ा।
2. चंद्र के नक्षत्र हैं : रोहिणी, हस्त एवं श्रवण।
3. मंगल के नक्षत्र हैं : मृगशिरा, चित्रा तथा धनिष्ठा।
4. बुध के नक्षत्र हैं-आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं रेवती।
5. गुरु के नक्षत्र हैं-पुनर्वसु, विशाखा एवं पूर्वाभाद्रपद।
6. शुक्र के नक्षत्र हैं-भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा।
7. शनि के नक्षत्र हैं-पुष्य अनुराधा, उत्तराभाद्रपद।
8. राहु के नक्षत्र हैं-आद्र स्वाति तथा शतभिषा।
9. केतु के नक्षत्र हैं-अश्विनी, मघा, एवं मूल।
वार
दिनों की संख्या सात है, सोमवार , मंगलवार , बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार।
करण
तिथि के आधे भाग को अर्थात आधी तिथि जितने समय में बीतती हैं उसे करण कहते है ये कुल 11 है, जिनके नाम बव, बालव, कौलव तेतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पद, नाग और किश्तुघ्न है।
योग
सूर्य तथा चन्द्र के राश्यांशो के योग से बनने वाले 27 प्रकार के योग होते है,
1. विष्कुम्भ (Vishkumbh) 2. प्रीति(Preeti) 3. आयुष्मान (Ayushman) 4.सौभाग्य (Saubhagy) 5.शोभन (Shobhn) 6.अतिगण्ड (Atigand) 7.सुकर्मा (Sukarma) 8. धृति (Dhriti) 9.शूल (Shool) 10.गण्ड (Gand) 11.वृद्धि (Vridhi) 12.ध्रुव (Dhruv) 13.व्याघात (Vyaghat) 14.हर्षण (harshand) 15.वज्र (vajr) 16.सिद्धि (Sidhi) 17.व्यातीपात (Vyatipat) 18.वरीयान (Variyan) 19.परिघ (Paridh) 20.शिव (Shiva) 21.सिद्ध (Sidh) 22.साध्य (Sadhay) 23.शुभ (Shubh) 24.शुक्ल(Shukl) 25.ब्रह्म (Brahma) 26.इन्द्र (Indra) 27.वैधृति (vaidhriti)
इन योगों का नाम इनसे प्राप्त होने वाले शुभ और अशुभ प्रभाव के आधार पर दिया गया है। 27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी जाती है। ये अशुभ योग हैं:
1. विष्कुम्भ 2.अतिगण्ड 3.शूल 4.गण्ड 5.व्याघात 6.वज्र 7. व्यतीपात 8. परिघ 9. वैधृति
इन अशुभ योगों का शुभफल भी है अगर आप अशुभ कार्य करने जा रहे हैं तो उसमें यह योग शुभ परिणाम देते हैं। इस तरह कार्य के अनुरूप योगों से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।