गृह प्रवेश

grah-pravesh

गृह प्रवेश

(१) अकपाटमनाच्छन्नमदत्तबलिभोजनम्। गृहं न प्रविशेदेवं विपदामाकरं हि तत्॥ (नारदपुराण, पूर्व० ५६। ६१९)

‘बिना दरवाजा लगा, बिना छतवाला, बिना देवताओं को बलि (नैवेद्य) तथा ब्राह्मण-भोजन कराये हुए घरमें प्रवेश नहीं करना चाहिये; क्योंकि ऐसा घर विपत्तियोंका घर होता है।’

(२) गृहप्रवेश माघ, फाल्गन, वैशाख और ज्येष्ठमासमें करना चाहिये। कार्तिक और मार्गशीर्षमें गृहप्रवेश मध्यम है। चैत्र, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और पौषमें गृहप्रवेश करनेसे हानि तथा शत्रुभय होता है। माघमास में गृहप्रवेश करने से धनका लाभ होता है। फाल्गुन मास में गृहप्रवेश करने से पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। वैशाख मास में गृहप्रवेश करने से धन-धान्यकी वृद्धि होती है। ज्येष्ठमास में गृहप्रवेश करने से पशु और पुत्रका लाभ होता है।

(३) जिस घर का द्वार पूर्व की ओर मुखवाला हो, उस घरमें पञ्चमी, दशमी और पूर्णिमामें प्रवेश करना चाहिये। जिस घर का द्वार दक्षिण की ओर मुखवाला हो, उस घर में प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथियों में प्रवेश करना चाहिये। जिस घरका द्वार पश्चिम की ओर मुखवाला हो, उस घर में द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी तिथियों में प्रवेश करना चाहिये। जिस घर का द्वार उत्तर की ओर मुखवाला हो, उस घर में तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथियों में प्रवेश करना चाहिये। चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या इन तिथियों में गृहप्रवेश करना शुभ नहीं है।

(४) रविवार और मंगलवार के दिन गृहप्रवेश नहीं करना चाहिये। शनिवार में गृह प्रवेश करने से चोर का भय रहता है।

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