राहु बारहवें भाव में नीच होता है और उसका कारक भाव भी है तथा केतु छठे भाव में नीच होता है और उसका कारक भाव भी है।
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राहु की महादशा में राहु, बृहस्पति, शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा एवं मंगल की अन्तर्दशा का फल
राहु का दृष्टि फल – पाँचवें भाव को राहु पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो भाग्यशाली, धनी, व्यवहारकुशल और सन्तानसुखी होता है
यदि किसी व्यक्ति के जीवन में अशुभ घटना उपस्थित होने लगे तनाव बढ़ने लगे , नींद ना आने की समस्या हो शरीर में कमजोरी महसूस होने लगे, वाद-विवाद होवे, खर्च बढने लगे, कमाई कम होने लगे, संतान संबंधी कष्ट, चर्म रोग, जोड़ों, घुटनों व रीढ़ की हड्डी में दर्द और रिश्तों में तनाव तो ये सब राहु केतु के कमजोर होने के संकेत है।