मंगल की महादशा – अन्तर्दशा का फल
(१) मंगल की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा का फल
पित्त, उष्णता (गर्मी से उत्पन्न होने वाले रोग हों)–घाव होने या चोट लगने का भय हो, भाईयों से वियोग हो । जाति के लोगों से, शत्रुओं से, राजा से तथा चोरों से विरोध हो । अग्नि पीड़ा का भय हो । किन्तु जातक को खेत और मुकदमों से धन की प्राप्ति हो। हमारा अनुभव है कि मंगल यदि योग कारक हो तो तो उसकी दशा अच्छी हो जाती है। मंगल बलवान् होने से जातक के विरोधी उत्पन्न होने पर भी विजय जातक की होती है । किन्तु यदि मंगल बिगड़ा हुआ हो तो जातक को शत्रुओं से पीड़ा पहुँचती है।
(२) मंगल की महादशा में राहु का फल
शस्त्र, अग्नि चोर, रिपु (शत्रु) राजा-इन सब से भय हो। विष के कारण बीमारी या कष्ट हो। किसी गुरुजन या बन्धु की हानि हो। जातक के काँख, आँख और सिर में बीमारी हो। जातक की मृत्यु हो जाये या उस पर महान् आपत्ति आवे।
(३) मंगल की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा का फल
इस अन्तर्दशा में शुभ फल होते हैं। अशुभ फल तो केवल इतना ही है कि कान में पीड़ा हो और कफ के कारण शरीर में रोग हो। बाकी सब शुभ फल ही हैं। जातक के पुत्र और मित्रों में वृद्धि हो, देवताओं और ब्राह्मणों, की अर्चना हो, सदैव अतिथि पूजा का अवसर मिले। पूण्य कर्मों में प्रसक्ति हो और तीर्थे में यात्रा हो।
(४) मंगल की महादशा में शनि की अन्तर्दशा
यह समय बहुत कष्ट कारक होता हैं। जातक के पुत्र, गुरुजन और पुरुखों पर एक के बाद एक विपत्ति आती है। जातक स्वयं विपत्तियों का शिकार होता है । शत्रु उसका धन हर लेते हैं । अग्नि और वायु से भय हो–सम्पत्ति आदि चली जावे या पित्त और वात के प्रकोप के कारण शरीरिक रोग हो। जातक के शत्रु उसका धन हर ले। उसकी धन हानि हो और मन को भीतर ही भीतर दुःख पहुचाने वाली घटनायें घटित हों।
(५) मंगल की महादशा में बुध की अन्तर्दशा का फल
राजा से या सरकार से पीड़ा हो । किसी शूद्र जाति के वरी के कारण बहुत कष्ट हो। शत्रुओं से भय हो, चोर उपद्रव करे और धन की हानि हो । पशु, हाथी और घोड़ों का नाश हो और शत्रुओं से समागम हो । अब पशु, हाथी या घोड़े तो प्रायः लोग रखते नहीं। तात्पर्य यह है कि खराब फल हो।
(६) मंगल की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का फल
अकस्मात् वज्र से भय हो, अग्नि और शस्त्र से पीड़ा हो, अपने देश से जाना पड़े या धन नाश हो और या तो जातक के स्वयं के प्राण छूट जायें या उसकी स्त्री का नाश हो जाये।
(७) मंगल की महादशा में शुक्र के अन्तर का फल
युद्ध में पराजय, अपना स्वदेश छोड़ना पड़े और विदेश में जाकर रहे। चोर लोग धन चुरा कर ले जायें, बाँये नेत्र में कष्ट हो । नौकरों की हानि हो । अर्थात् जातक को नौकरों को कष्ट हो या नौकरों की संख्या में कमी हो जाये।
(८) मंगल की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा का फल
राजा से सम्मान प्राप्त हो । युद्ध के कारण जातक के प्रभाव में वद्धि; जातक के नौकरों में, धन में, धान्य में लक्ष्मी में और उसकी स्त्रियों में वृद्धि और विलास हो । अर्थात् इन सब वस्तुओं का अधिकाधिक वैभव और विलास हो। जातक अपने साहस से लक्ष्मी का उपार्जन करे।
(९) मंगल की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का फल
नाना प्रकार के धनों का आगम हो । पुत्र-प्राप्ति हो, वस्त्र. शय्या, आभूषण, रत्न और सम्पत्ति मिले । शत्रुओं से जुदाई हो अर्थात् शत्रु पीड़ा न रहे । लेकिन किसी गुरुजन को पीड़ा हो और जातक को स्वयं को भी गुल्म और पित्त के कारण कष्ट हो सकता है।