मंगलीक कुण्डली किसे कहते हैं।
चुनरी मंगल और मौलियां मंगल क्या होता है?
सर्वार्थ चिन्तामणि, चमत्कार चिन्तामणि, देवकेरलम्, अगस्त्य संहिता, भावदीपिका जैसे अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में मंगल के बारे में एक प्रशस्त श्लोक मिलता है
लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।
भार्याभर्तृविनाशाय, भर्तुश्च स्वीविनाशनम्।।
अर्थात् जन्म कुण्डली के लग्न स्थान से म. 1/4/7/8/12वें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुण्डली मंगलीक कहलाती है। पुरुष जातक की कुण्डली में यह स्थिति हो तो वह कुण्डली ‘मौलिया मंगल’ वाली कुण्डली कहलाती है तथा स्त्री जातक की कुण्डली में उपसेक्त ग्रह-स्थिति को ‘चुनरी मंगल’ वाली कुण्डली कहते हैं। इस श्लोक के अनुसार जिस पुरुष की कुण्डली में ‘मौलिया मंगल’ हो उसे ‘चुनरी मंगल’ वाली स्त्री के साथ विवाह करना चाहिए अन्यथा पति या पत्नी दोनों में से एक की मृत्यु हो जाती है। यह श्लोक कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है परन्तु कई बार इसकी अकाट्य सत्यता नव दम्पत्ति के वैवाहिक जीवन पर अमिट बदनुमा दाग लगाकर छोड़ जाती है। उस समय हमारे पास पश्चाताप के सिवा हमारे पास कुछ नहीं रहता। ज्योतिष सूचनाओं व सम्भावनाओं का शास्त्र है। इसका सही समय पर जो उपयोग कर लेता है वह धन्य हो जाता है और सोचता है वह सोचता ही रह जाता है, उस समय सिवाय पछतावे के कुछ शेष नहीं रहता।
क्या चन्द्रमा से भी मंगल देखना चाहिए?
बहुत जगह यह प्रश्न (विवाद) उठ खड़ा होता है कि क्या लग्न कुण्डली की तरह चन्द्र कुण्डली’ से भी मंगल का विचार करना चाहिए। क्योंकि उपरोक्त प्रसिद्ध श्लोक में लग्ने शब्द दिया हुआ है यहाँ चन्द्रमा का उल्लेख नहीं है। इस शंका के समाधान हेतु हमें परवर्ती दो सूत्र मिलते हैं।
लग्नेन्दूभ्या विचारणीयम्।
अर्थात् जन्म लग्न से एवं जन्म के चन्द्रमा दोनों से मंगल की स्थिति पर विचार करना चाहिए और भी कहा है-यदि जन्म चक्र एवं जन्म समय का ज्ञान न भी हो तो नाम राशि से जन्म तारीख के ग्रहों को स्थापित करके अर्थात् चन्द्र कुण्डली बनाकर मंगल की स्थिति पर विचार किया जा सकता है। इस बारे में स्पष्ट वचन मिलता है।
अजातजन्मनां नृणा. नामभे परिकल्पना।
तेनैव चिन्तयेत्सर्व, राशिकूटादि जन्मवत्।।
परन्तु यदि एक जातक का जन्म चक्र मौजूद हो और दूसरे का न हो तो दोनों की परिकल्पना भी नाम राशि से ही करनी चाहिए। एक का जन्म से.दसरे का नाम से मिलान नहीं करना चाहिए। जन्मभं जन्मधिषण्येन, नामधिषण्येन नामभम, व्यत्वयेन यदयोज्यम, दम्पत्योनिर्धन ध्रुवम।
अतः आज के युग में तात्कालिक समय में भी मंगलीक दोष की गणना संभव है अस्तु।
भौम पंचक दोष किसे कहते हैं? क्या शनि, राहु व अन्य क्रूर ग्रहों के कारण कुण्डली मंगलीक कहलाती है?
चन्द्राद् व्ययाष्टमे मदसुखे राहुः कुजार्की तथा।
कन्याचेद् वरनाशकृत वरबघूहानिः ध्रुवं जायते॥
मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर होते हैं अत: उपरोक्त स्थानों में इनकी स्थिति व सप्तमेश की 6/8/12 वें घर में स्थिति भी मंगलीक दोष को उत्पन करती है। यह भौम पंचक दोष कहलाता है।
द्वितीय भाव भी उपरोक्त ग्रहों से दूषित हो तो भी उसके दोष शमनादि पर विचार अभीष्ट है।
विवाहार्थ द्रष्टव्य भावों में दूसरा, 12वां भाव का विशेष स्थान है। दूसरा कुटुम्ब वृद्धि से सम्बन्धित है, 12वां भाव शय्या सुख से। चतुर्थ भाव में मंगल, घर का सुख नष्ट करता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का स्थान है, वहां पत्नी व पति के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है।
1. लग्न में मंगल अपनी दृष्टि से 1 4 7 8 भावों को प्रभावित करेगा। यदि दुष्ट है तो शरीर व गुप्तांग को बिगाड़ेगा। रति सुख में कमी करेगा। दाम्पत्य सुख बिगाड़ेगा।
2 इसी तरह सप्तमस्थ मंगल, पति, पिता, शरीर और कुटुम्ब सौख्य को प्रभावित करेगा। सप्तम में मंगल पत्नी के सुख को नष्ट करता है जब गृहणी (घर वाली) ही न रहे तो घर कैसा?
3. चतुर्थस्थ मंगल-सौख्य पति, पिता और लाभ को प्रभावित करेगा। चतुर्थ में मंगल घर का सुख नष्ट करता है।
4. लिंगमूल से गुदावधि अष्टम भाव होता है। अष्टमस्थ मंगल-इन्द्रिय सुख, लाभ, आयु को व भाई बहनों को गलत ढंग से प्रभावित करेगा।
5. द्वादश भाव शयन सुख कहलाता है। शय्या का परमसुख कान्ता हैं। बारहवें मंगल शयन सुख की हानि करता है। धनस्थ मंगल-कुटुम्ब संतान, इन्द्रिय सुख, आवक व भाग्य को. एकमत से पिता को प्रभावित करेगा। .
अत: इन स्थानों में मंगल की एवं अन्य क्रूर ग्रहों की स्थिति नेष्ट मानी गई है। खासकर अष्टमस्थग्रहों नूनं न स्त्रियां शोभना मतः (स्त्री जातक) अतः अष्टम और सप्तमस्थ मंगल का दोष तो बहुत प्रभावी है।