RAJYOG | राजयोग विचार
केन्द्रेश और त्रिकोणेश का आपस मे सम्बन्ध होना ‘योग’ कहलाता है । ‘राज’ शब्द ऐश्वर्य-बोधक है इस कारण कुण्डली में कोई भी योग हो, यदि उसका फल शुभ, धनकारक, समृद्धि या उत्कर्ष करने वाला होता है तो उसे ज्योतिषियो की भाषा में ‘राजयोग’ कहते हैं।
ऐसा राजयोग किस हद तक फल दिखायेगा यह सारी कुण्डली की बलशालिता पर, अन्य ग्रहो के बलाबल पर तथा देश, काल, पात्र पर निर्भर होता है। योगो की सख्या अपरिमित है। यहाँ केवल त्रिकोण और केन्द्र के स्वामी का योग ‘राजयोग होता है, यह बतलाया जाता है।
बहुत से लोग केन्द्रेश व त्रिकोणेश योग को “लक्ष्मी-विष्णु सयोग” भी कहते है। शुभ फल होना स्वाभाविक ही है। किसी भी केन्द्रेश का किसी भी त्रिकोणेश से सबन्ध हो तो वह राजयोगकारक होता है। केन्द्रेश-त्रिकोणेश मे भी तारतम्य होता है । नवमेश-दशमेश का सबन्ध जितना योगकारक हो सकता है उतना चतुर्थेश-पचमेश का नही । इसी प्रकार किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली मे नवमेश-दशमेश दोनो एक साथ दशम मे बैठे हों तो अधिक योगकारक होंगे। यही दोनो ग्रह यदि एक साथ अष्टम मे बैठे हो तो उतना शुभ फल कैसे दिखा सकते हैं ? यह सब अपनी बुद्धि से ऊहापोह करके समझना चाहिए।
बहुत विशिष्ट राजयोग –
- यदि लग्नेश और दशमेश दोनों एक साथ लग्न मे हों तो ऐसा मनुष्य बहुत विख्यात होता है ।
- यदि लग्नेश और दशमेश दोनो दशम मे हो तो भी ऐसा मनुष्य बहुत विख्यात होता है ।
- यदि लग्नेश दशम मे और दशमेश लग्न मे हो तो भी विशिष्ट राजयोग फल होता है।
- नवमेश, दशमेश दोनो (क) दशम मैं हों या (ख) दोनो नवम मै हो या (ग) नवमेश दशम मे, दशमेश नवम में हो तो विशिष्ट राजयोग होता है।
ऐसे योग वाले व्यक्ति विशिष्ट ख्यातिमान्, विजयी, वीर्यवान्, पराक्रमी, सग्राम, विवाद आदि मे जयशाली होते हैं।
इसी प्रकार लग्नेश व चतुर्थेश के सम्बन्ध से मनुष्य सुखी होता है। लग्नेश व पंचमेश का सम्बन्ध होने से मनुष्य विद्वान् और बुद्धिमान् होता है। लग्नेश, सप्तमेश सम्बन्ध से अच्छी पत्नी वाला और सत्कर्म करने वाला होता है। लग्नेश-सप्तमेश सम्बन्ध होने से मनुष्य भाग्यवान् होता है । पंचमेश-दशमेश सम्बन्ध से राजकार्यों मे बुद्धिमान होता है, पंचमेश-चतुर्थेश सम्बन्ध से बुद्धि का सदुपयोग करने के कारण सुखी होता है। पंचमेश-सप्तमेश सम्बन्ध से बुद्धिमती पत्नी प्राप्त होने के कारण सद्गृहस्थ होता है । नवम-चतुर्थेश सम्बन्ध होने से भाग्योदय होने के कारण सुखी होता है तथा नवमेश-सप्तमेष सम्बन्ध से भाग्यशाली पत्नी की प्राप्ति से सद्गृहस्थ होता है। नवमेश-दशमेश सम्बन्ध से भाग्यसुख और राज्यसुख प्राप्त होते हैं।