षष्ठेश का फल
यदि षष्ठेश छठे स्थान में हो तो व्यक्ति का मित्र भी शत्रु हो जाता है और अन्य जाति वाला मित्र बन जाता है तथा वो व्यक्ति अकड़कर चलता है।
जब षष्ठेश सप्तम, लाभ स्थान अथवा लग्न में हो तो व्यक्ति कीर्ति गुणवान, धनवान, अभिमानी, साहसी और पुत्रहीन होता है।
यदि षष्ठेश अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो तो व्यक्ति रोगी. पंडित का शत्र, परस्त्री से भोग करने वाला और जीवहिंसा में तत्पर होता है।
जब षष्ठेश नवम स्थान में हो तो व्यक्ति काष्ठ पाषाण का विक्रय वाला होता है। उसके व्यवहार में कभी हानि तो कभी वृद्धि होती है।
यदि षष्ठेश सहज या चतुर्थ स्थान में हो तो व्यक्ति क्रोधी, लाल नेत्रों वाला, उदार, चुगली करने वाला, द्वेष करने वाला चलचित्त और धनवान होता है।
यदि षष्ठेश कर्म या धन स्थान में हो तो व्यक्ति साहसी, अपने कुल की निंदा करने वाला, परदेश में सुखी, वक्ता और अपने कर्म में तत्पर होता है।
जिसका षष्ठेश पंचम स्थान में हो, उसके मित्र, धन आदि चलायमान होते हैं। वह व्यक्ति दयायुक्त सुखी, सौम्य स्वभाव वाला और अपने कार्य में बड़ा चतुर होता है।