श्री घंटाकर्ण मंत्र
भारतीय मंत्र-यंत्र साहित्य में घंटाकर्ण का स्थान अन्यतम कहा जाता है। इसका प्रयोग अव्यर्थ, स्वल्प श्रमसाध्य एवं सुखद माना जाता है ।
कहते हैं कि घंटाकर्ण देव सेनापति कार्तिकेय के तृतीया पार्षद थे। अन्य कोई ध्वनि सुनना के पसन्द नहीं करते थे। इस संकल्प की मूर्ति हेतु उन्होंने अपने कान के समीप घटाए लटका ली। फलतः उनके कानों में अनिच्छित कोई शब्द प्रविष्ट ही नहीं होता था। उनका प्रभाव अमोघ माना जाता है।
यंत्र और मंत्र के क्षेत्र में घंटाकर्ण मंत्र साधना सम्प्रदायानुसार प्रचलित देखने को मिलती है। फिर भी कुछ साधनाएं व्यापक एवं सर्वोपयोगी भी दृष्टिगत होती हैं, जिनके कुछ प्रयोग यहां तथा मंत्र-सम्बन्धी प्रकरणों में दिये गए हैं।
साधना में भू-शुद्धि, भूत-शुद्धि आदि क्रियाएं नित्य कर्म में रहनी चाहिए। अनुष्ठान में प्रायः सभी नियमों का पालन किया जाता है तीर्थस्थल, एकान्त स्थान, स्वस्थ मानस मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है।
मूल मंत्र
ॐ घंटाकर्णो महावीरः सर्वव्याधि-विनाशकः।
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष-रक्ष महाबलः ॥1॥
यत्र त्व तिष्ठसे देव! लिखितो ऽक्षर-पंक्तिभिः।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात पित्त कफोद्भवाः ॥2॥
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपात्क्षयम्।
शाकिनी-भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति नो ॥3॥
नाकाले मरण तस्य, न च सर्पेण दृश्यते।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्वीं श्रीं घंटाकर्ण।
नमोस्तुते! ऊँ नरवीर! ठः ठः ठः स्वाहा।।
विधि – उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल रंग की माला से जाप प्रारंभ करे शुद्ध वस्त्र पहने ७२ दिन में सवा लाख जाप होने चाहिए। अन्त में दशांश हवन, तर्पण आदि करना चाहिए। हवन किशमिश, बादाम, चारोली, नारियल आदि से करे। ७२ दिन में मंत्र सिद्धि हो जायगी। इससे अनेक बाधाएं व अरिष्ट शान्त होते हैं।
श्री घंटाकर्ण द्रव्य प्राप्ति मंत्र
मंत्र ओं ह्रीं श्रीं क्ली क्रो ऊँ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मीं पूरय पूरय सुख सौभाग्यं कुरु कुरु स्वाहा।
विधि – धनतेरस को ४० माला, रूप चौदस को बयालीस माला तथा दीपावली को तेतालीस माला का जाप करे। वह वर्ष निश्चय ही लक्ष्मी प्राप्ति के लिए उत्तम होगा। उत्तर की ओर मुंह करके जाप करना चाहिए। सफेद वस्त्र, सफ़ेद ऊनी आसन, लाल माला का व्यवहार करना चाहिए।