कुंडली में राहु-केतु का फल विचार
राहु बारहवें भाव में नीच होता है और उसका कारक भाव भी है तथा केतु छठे भाव में नीच होता है और उसका कारक भाव भी है। राहु तथा गुरु एक भाव में शत्रु नहीं है। राहु-गुरु की युति हो तो गुरु मौन रहेगा अर्थात् किसी प्रकार शुभ- अशुभ फल नहीं देगा।
राहु, बुध का मित्र है। राहु-बुध की युति छठे भाव में हो तो शुभ फल देता है। किन्तु बारहवें भाव में ये स्थित हो तो अशुभ फल देता है।
केतु छठे भाव में और राहु बारहवें भाव में नीच होता है और भाव के स्वामी भी। उनकी शंकित परिस्थितियों के लिए जब राहु को बुध और केतु को गुरु की सहायता मिलती है अर्थात् राहु तीसरे या छठे भाव में, केतु नौवें या बारहवें भाव में स्थित हों तो दोनों उच्च होंगे। भाव छः का स्वामी बुध और केतु को माना गया है। जब छठा भाव खाली हो और बुध तीसरे भाव में हो तो छठे भाव का स्वामी केतु होता है किन्तु बुध तीसरे में हो और छठा भाव रिक्त हो तो बुध और केतु में से दोनों जो शुभ होगा, वही स्वामी होगा।
बारहवें भाव का स्वामी राहु और गुरु को माना गया है। जब बारहवाँ भाव रिक्त (खाली) हो तथा गुरु नौवें भाव में न हो तो बारहवें भाव के लिए दोनों का स्वामी बुध होगा।
बुध-राहु बारहवें भाव में नीच का होगा क्योंकि बारहवाँ भाव उसके शत्रु ग्रह गुरु का है। जब बुध से केतु छठे भाव में हो तो उच्च होगा क्योंकि यह बुध की अपनी राशि है। गुरु के भाव (खाना) में राहु गुरु के साथ अशुभ फल देता है। बुध के भाव में केतु भी अशुभ फल देगा। किन्तु गुरु और केतु की युति हो तो केतु उच्च फल अर्थात् शुभ फल देगा। केतु-गुरु के साथ बराबर का फल देता है।