कछुआ लाता है जीवन में धन और तरक्की
कछुआ लंबी उम्र तो देता ही है साथ ही इसे घर या कार्य स्थल पर सही जगह पर रखा जाए तो यह आपको धन-दौलत और शोहरत भी दिलवाता है।
धन-दौलत और प्रसिद्धि का प्रतीक है कछुआ
कछुआ खोले किस्मत के दरवाजे
कछुआ लाता है जीवन में धन और तरक्की
कछुए का प्रयोग प्राचीन समय से ही वास्तु उपाय के रूप में किया जाता रहा है। प्राचीनतम मंदिरों में हमें असीम शांति अनुभव होती है, उसका मुख्य कारण मंदिर के मध्य में कछुए की स्थापना है। कहा जाता है कि इसको जहां भी रखा जाता है, वहां सुख-समृद्धि-शांति आती है। आजकल बहुत से लोग घर में कछुए की प्रतिमा रखते हैं।
वास्तु और चाइनीज वास्तु जिसे फेंगशुई भी कहते हैं, के अनुसार कछुआ शुभ है । लेकिन हिंदू धर्म में भी कछुए को शुभता का प्रतीक माना गया है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री हरि विष्णु का एक रूप कछुआ भी था । समुद्र मंथन के समय भगवान ने कछुए का स्वरूप लेकर मंद्राचल पर्वत को अपने कवच पर ही संभाला था । उनका यह स्वरूप सभी स्मरण करते हैं। श्री हरि विष्णु के कछुए के रूप में अवतरित होने की वजह से इसे धर्म की दृष्टि से भी शुभ माना जाता है। विष्णु जी की अर्धांगिनी माता लक्ष्मी की कृपा सदैव उस व्यक्ति पर बनी रहती है जहां कछुए का वास होता है। कछुए को घर में रखने से धन, वैभव की कमी नहीं होती। ऐसे घर पर हमेशा मां लक्ष्मी अपनी कृपा बनाए रखती है।
Tortoise in Vastu Shastra
वास्तु के अनुसार भवन में कछुए को उत्तर दिशा में रखने से धन का लाभ और शत्रुओं का नाश होता है। परिवार के सदस्य सुरक्षित रहते हैं। परिवार के मुखिया की आयु लंबी होती है। भवन के मुख्यद्वार पर कछुए का चित्र लगाने से परिवार में शांति बनी रहती है और यह क्लेश व नकारात्मक चीजों को भवन से दूर रखता है। भवन की नकारात्मक उर्जा भी दूर होती है। धातु से बने हुए कछुए को भवन में रखने से रहने वालों का मूड अच्छा रहता है। यदि व्यवसायी अपने प्रतिष्ठान के मुख्यद्वार पर कछुए का चित्र लगाएं तो व्यापार में धन लाभ और सफलता मिलती है रुके हुए काम जल्दी होने लगते हैं।
समुद्र मंथन के लिए भगवान विष्णु ने कछुआ अवतार धारण किया था। जिस पर मंदराचल पर्वत स्थापित हुआ और देव दानव ने वासुकि नाग की रस्सी बनाकर मंथन प्रारंभ किया था। मंथन में से 14 रत्न समुद्र से निकले थे। मंथन में निकले रत्नों में से एक विष्णुप्रिया महालक्ष्मी भी है। भगवान विष्णु ने इनको अंगीकार किया है। इसलिए कच्छप मुद्रिका या अंगूठी धारण करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, किंतु उसके लिए मंदराचल और वासुकी की तरह जीवन को कर्म पथ पर मथना भी पड़ता है। बिना कर्म का मंथन किए केवल मुद्रिका धारण करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं होगी।